Saturday, November 8, 2014

दिव्य बातें या गुण

वरदानो द्वारा अव्यक्त पालना
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🌞मै परम पूज्य आत्मा हूँ.....इस स्मृति से सम्पूर्ण पवित्र भव
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बाप दादा सदा परमपवित्र हैं और मै आत्मा भी परम पवित्र हूँ,पवित्रता ही बाप को प्यारी लगती है। इसलिए पवित्रता जरा भी खंडित ना हो।कभी कोई अपवित्र संकल्प आये तो स्मृति में लाओ कि मै तो परम पूज्यआत्माहूँ।मनसा,संकल्प,बोल,सम्बन्ध-सम्पर्क सबमे सम्पूर्ण पवित्रता के वरदानी बनने के लिए अपने पूज्य स्वरूप को बार -बार स्मृति में लाओ।


अमृत वेले का महत्व

त्रिकालदर्शी बनो

🌼सदा अमृत वेले से लेकर रात तक के कार्य चाहे लौकिक,चाहे आलौकिक,सब कार्य सहज और सफल हो ,उसकी सहज विधि क्या है???कोई भी कर्म करते हो तो पहले त्रिकालदर्शी बन फिर कोई कर्म करो। क्योकि त्रिकालदर्शी बन कर काम करने से,तीनो कालो का ज्ञान बुद्धि मे रहने से कुछ उपर-निचे नही होगा।

🌼वैसे भी ज्ञान का अर्थ ही है कि आगे-पीछे सोच-समझ कर कर्म करो। कर्म के पहले उसकी result को जानो। ऐसे नही जल्दी-2 जो आया वह कर लिया। उसमे सफलता नही होती। पहले परिणाम को सोचो,फिर कर्म करो तो सदा श्रेष्ठ परिणाम निकलेगा।। श्रेष्ठ परिणाम को ही सफलता कहा जाता है।

🌼अगर कर्म करने से पहले यह आदत पड़ जाये कि पहले तीनो कालो का सोचना है तो कोई भी कर्म साधारण नही होगा। व्यर्थ नही होगा।

Mera Baba

आज का स्वमान

🌞मै आत्मा सदा सबको सुख देने वाली,अपनी जबान पर खबरदारी रखने वाली बाबा की गुलगुल बच्ची हूँ।

कहा जाता है कि शरीर पर लगा घाव तो फिर भी समय बीतने के साथ भर जाता है लेकिन हमारी जबान से निकले कडवे शब्द दूसरे के दिल पर ऐसा घाव कर देते हैं जिसे समय भी नही भर पाता। इसलिए कुछ भी बोलने से पहले हमेशा इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि हमारी जबान से कोई भी ऐसा कडवा शब्द ना निकले जो सुनने वाले को आहत करे,उसे दुःख पहुंचाए।

मुख से कडवे शब्द तब निकलते हैं जब हम अपने आप को यानी अपने असली स्वरूप को,अपने उद्देश्य को और जीवन दाता परम पिता परमात्मा को भूलते हैं। और ये सब तभी भूलते हैं जब खुद को शरीर समझ देह के अभिमान में आते हैं।

इसलिए सब से पहले तो यह पक्का निश्चय करना है कि हम शरीर नही आत्मा हैं और आत्मा का स्वधर्म ही है सुख देना। जब यह बात स्मृति में रहेगी तो जबान से सबको सुख देने वाले शब्द ही निकलेंगे। जब अपना उद्देश्य यानि हमे देवी-देवता बनना है,यह स्मृति में रखेंगे तो दैवी गुणो की धारणा स्वत: होती जायेगी और आसुरी गुण समाप्त होते जायेंगे।

🌝तो इन सब बातो को बुद्धि में अच्छी रीति धारण कर,सबको सुख देने वाली,अपनी जबान पर खबरदारी रखने वाली बाबा की गुलगुल आत्मा बनना है।
Omshanti

बीती को भुलाइए

एक बहुत सुंदर कहावत है",instead of questioning the past,put a fullstop to it"बीते हुए समय के प्रति प्रश्न कि यह क्यों हुआ था,कैसे हुआ था,उठाने की बजाए पूर्ण विराम लगा दिजिय। जब वाक्य पूरा होने पर Fullstop लगा देते हैं तो आगे लिखना सहज हो जाता है और लिखे हुए को पढ़ना भी सहज हो जाता है।fullstop सही जगह पर ना लगा हो तो वाक्य आपस में मिल जाते हैं और लिखा हुआ समझ में नही आता।

इसी प्रकार बीते हुए समय पर समय पर full stop ना लगाने पर जीवन उलझ जाता है। भूतकाल को पकड़ने की नाकाम कोशिश में वर्तमान छूट जाता है।आगे जाने के लिए पिछला छोड़ना और भूलना पड़ता ही है भले ही वह कितना ही प्रिय क्यों ना रहा हो। जीवन यात्रा में भी नया पाने के लिए पुराने को भूलना अनिवार्य है।

REMEMBER

सुख-दुःख,हानि-लाभ,जन्म-मृत्यु ये सब रंग-मंच पर धूप-छाव की तरह आते-जाते हैं। ऋतू परिवर्तन की तरह मानव की परिस्तिथिया भी परिवर्तन होती रहती हैं। जब हम प्राकृतिक परिवर्तन को स्वीकार करते हैं तो हमे अन्य परिवर्तन भी स्वीकार कर लेने चाहिए। जैसे रात के बाद दिन अवश्य आता है उसी प्रकार पिछली भूलो से सीख कर आगे बढ़ने वाले को मंजिल अवश्य मिलती है।
⛅⛅⛅⛅
[9:49PM, 24/10/2014] संजय सिंह चारण: 💞💞💞💞💞

💥 पवित्रता 💥

💞 अपना सब कुछ बाप  को अर्पण कर सदा हल्के रहने वाले ही फरिश्ते हैं।

💞 सहजयोगी वह हैं जो हर संकल्प व कर्म से बाप के स्नेह का वायब्रेशन फैलाते हैं।

💞 विश्वकल्याणकारी वह हैं जो प्रक्ति सहित हर आत्मा के प्रति शुभ भावना रखते हैं।

💞 नाँलेज एव अनुभव की डबल अथाँरिटी वाले ही मस्त फकीर रमता योगी हैं।

💞 एक दो को देखने के बजाय स्वयं को देखो और परिवर्तन करो।
?
💞 फरिश्ता बनना है तो व्यर्थ व डिस्टर्ब करने वाले बोल से मुक्त बनो।

💞 इच्छाये परछाई के समान हैं आप पीठ कर दो तो पिछे-पिछे आयेंगी।

💞 पवित्रता ही नवीनता है और यही ञान का फाउंडेशन है।

💞💞💞💞                  दिव्य गुण - त्याग

🌀 चौथी प्रकार का त्याग देह-अभिमान का त्याग है । मरने के बाद तो सभी आत्माएँ शरीर को त्याग जाती ही हैं, परंतु जीते जी देह-भान का त्याग करना, सही अर्थ में "मरजीवा" बनना त्याग है ! देह अभिमान का त्याग अर्थात जिस देह को हमने धारण किया हुआ है उससे न्यारे होकर रहना अर्थात उसमें भी आसक्ति एवं मोह का त्याग करना गोया त्याग की उच्च पराकाष्ठा पर पहुँचना है ।

🌀वास्तव में आत्मा का जो शरीर रूपी चोला है, उसमें आत्मा को अलग रखना- यही सर्वोच्च कोटि का संयास है, न कि रूई के बने कपड़ों से अलग रहना । जब मनुष्य देह को ही भुला देता है और आत्मिक स्मृति में स्थित हो जाता है, तब तो मानों वह सारे संसार का त्याग कर देता है ।

🌀 पाँचवाँ त्याग व्यर्थ अथवा अशुद्ध संकल्पों का त्याग है । इस त्याग की तो बहुत ही ऊँची स्टेज है। किसी के अवगुण को देखते हुए भी उसे अपने मन में टिकने न देना, किसी के दोष का पता चलने पर उसे चित्त पर न धरना -यह परम शांति को देने वाला परमहंस त्याग है ।

🌀 छठवाँ त्याग सर्व सांसारिक आधारों का त्याग है। जो सर्वस्व त्यागी होता है, वह एक आत्मिक बल और ईश्वर के भरोसे पर टिका होता है। उसका आधार एक परमपिता परमात्मा और उसका दिया हुआ दिव्य ज्ञान,योग और दिव्य गुण होता है। इसलिए अपने शरीर को भी अब अपना न मानकर प्रभु का धरोहर मानता है। वे और संगों का त्याग करके एक सत्य का संग करते हैं । " और संग तोड़, एक संग जोड़ " अथवा " मामेकम् शरणम् व्रज " - इस प्रभु आज्ञा का पालन करते हुए वे सर्वस्व त्यागी बनते हैं ।


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