Saturday, November 8, 2014

शर्त

शहर के सबसे बडे बैंक में एक बार एक
 बुढिया आई ।
 उसने मैनेजर से कहा - "मुझे इस बैंक मे
 कुछ
 रुपये
 जमा करने हैं" । मैनेजर ने पूछा - कितने हैं,
वृद्धा बोली - होंगे
 कोई दस
 लाख। मैनेजर बोला - वाह
 क्या बात है, आपके
 पास तो काफ़ी पैसा है, आप
 करती क्या हैं ?
वृद्धा बोली -
कुछ खास नहीं, बस शर्तें
 लगाती हूँ । मैनेजर
 बोला - शर्त लगा-लगा कर आपने इतना सारा पैसा कमाया है ?
कमाल है...
वृद्धा बोली - कमाल कुछ नहीं है
 बेटा, मैं
 अभी एक
 लाख रुपये की शर्त लगा सकती हूँ कि तुमने
 अपने सिर पर विग लगा रखा है ।
 मैनेजर हँसते
 हुए बोला -
नहीं माताजी मैं
 तो अभी जवान हूँ, और विग नहीं लगाता । तो शर्त
 क्यों नहीं लगाते ?
वृद्धा बोली ।
 मैनेजर ने सोचा यह पागल
 बुढिया खामख्वाह ही एक
 लाख रुपये गँवाने पर तुली है,तो क्यों न मैं
 इसका फ़ायदा उठाऊँ... मुझे
 तो मालूम ही है कि मैं विग
 नहीं लगाता । मैनेजर
 एक लाख की शर्त लगाने
 को तैयार हो गया । वृद्धा बोली - चूँकि मामला एक
 लाख रुपये का है
 इसलिये मैं कल सुबह ठीक दस बजे
 अपने वकील
 के साथ आऊँगी और उसी के
 सामने शर्त का फ़ैसला होगा ।
 मैनेजर ने कहा - ठीक है बात
 पक्की... मैनेजर
 को रात
 भर नींद नहीं आई.. वह एक लाख
 रुपये और बुढिया के
 बारे में सोचता रहा ।
 अगली सुबह ठीक दस बजे
 वह
 बुढिया अपने वकील के साथ
 मैनेजर के केबिन में पहुँची और कहा, क्या आप तैयार
 हैं ? मैनेजर ने
 कहा - बिलकुल,
क्यों नहीं ?वृद्धा बोली-
लेकिन चूँकि वकील
 साहब भी यहाँ मौजूद हैं और बात एक लाख की है
 अतः मैं तसल्ली करना चाहती हूँ
 कि सचमुच आप
 विग नहीं लगाते, इसलिये मैं अपने
 हाथों से
 आपके बाल नोचकर देखूँगी। मैनेजर ने पल भर सोचा और
 हाँ कर दी, आखिर मामला एक
 लाख का था ।
 वृद्धा मैनेजर
 के नजदीक आई और धीर-धीरे
 आराम से मैनेजर के
 बाल नोँचने लगी । उसी वक्त
 अचानक
 पता नहीं क्या हुआ,
वकील साहब
 अपना माथा दीवार पर ठोंकने लगे
 ।
 मैनेजर ने कहा - अरे.. अरे.. वकील
 साहब
 को क्या हुआ ?
वृद्धा बोली - कुछ नहीं, इन्हें सदमा लगा है, मैंने
 इनसे
 पाँच लाख रुपये की शर्त लगाई
 थी कि आज
 सुबह दस बजे मैं शहर से सबसे बडे बैंक
 के मैनेजर के बाल नोँचकर
 दिखा दूँगी।

चुटकुला

संता सुबह-सुबह डीटीसी की बस से ऑफिस जा रहा था...
उसके बगल वाली सीट पर एक महिला अपने बच्चे के साथ बैठी हुई थी.
महिला के हाथ में टिफिन था जिसमे हलवा रखा हुआ था. वह बच्चे को हलवा खिलाने की कोशिश कर रही थी पर बच्चा खाना नहीं चाहता था, नखरे कर रहा था.
महिला बार-बार बच्चे से कह रही थी: “बेटा, जल्दी से हलवा खा लो नहीं तो मैं इसे बगल में बैठे अंकल को दे दूँगी.”
बच्चे को शायद भूख नहीं थी इसलिए वह टिफिन की तरफ देख भी नहीं रहा था... महिला बार-बार वही बात दोहरा रही थी:
“जल्दी से खा लो वरना हलवा अंकल को दे दूंगी …”
.
.
जब काफी देर हो गई तो संता बोला: “बहनजी,
आपको जो फैसला करना है, जल्दी कीजिए … आपके हलवे के चक्कर में मैं 4 स्टॉप आगे आ गया हूँ … !”😺😛

कहानी - समजदारी

समझदारी

एक किसान को गाँव
के साहूकार से कुछ धन उधार लेना पड़ा।
बूढा साहूकार बहुत चालाक
और धूर्त था, उसकी नज़र किसान
की खूबसूरत बेटी पर थी।
अतः उसने किसान से एक सौदा करने
का प्रस्ताव रखा। उसने
कहा कि अगर
किसान अपनी बेटी की शादी साहूकार
से कर दे
तो वो उसका सारा कर्ज माफ़
कर देगा। किसान और उसकी बेटी,
साहूकार के इस प्रस्ताव से कंपकंपा उठे।
तब साहूकार ने उनसे कहा कि ठीक
है,अब ईश्वर को ही यह
मामला तय करने देते हैं। उसने
कहा कि वो दो पत्थर
उठाएगा,एक काला और एक सफ़ेद, और
उन्हें एक खाली थैले में
डाल देगा। फिर किसान
की बेटी को उसमें से एक पत्थर
उठाना होगा-
१-अगर
वो काला पत्थर उठाती है
तो वो मेरी पत्नी बन
जायेगी और किसान का सारा कर्ज
माफ़ हो जाएगा ,
२-अगर वो सफ़ेद पत्थर उठाती है
तो उसे साहूकार से शादी करने
की जरूरत नहीं रहेगी और फिर
भी किसान का कर्ज माफ़ कर
दिया जाएगा,
३-पर अगर वो पत्थर उठाने से
मना करती है तो किसान को जेल में
डाल दिया जाएगा।
वो लोग किसान के खेत में एक
पत्थरों से भरी पगडण्डी पर
खड़े थे, जैसे ही वो बात कर रहे थे,
साहूकार ने नीचे झुक कर
दो पत्थर उठा लिये, जैसे ही उसने
पत्थर उठाये, चतुर बेटी ने
देख लिया कि उसने दोनों ही काले
पत्थर उठाये हैं और उन्हें
थैले में डाल दिया। फिर साहूकार ने
किसान की बेटी को थैले में से एक
पत्थर
उठाने के लिये कहा। अब किसान
की बेटी के लिये
बड़ी मुश्किल हो गयी, अगर
वो मना करती है तो उसके
पिता को जेल में डाल दिया जाएगा,
और अगर पत्थर उठाती है
तो उसे साहूकार से
शादी करनी पड़ेगी।
किसान की बेटी बहुत समझदार थी,
उसने थैले में हाथ डाला और एक पत्थर
निकाला, उसे देखे बिना ही घबराहट
में पत्थरों से
भरी पगडण्डी पर नीचे गिरा दिया,
जहां वो गिरते ही अन्य
पत्थरों के बीच गुम हो गया।
"हाय, मैं भी कैसी अनाड़ी हूँ", उसने
कहा, " किन्तु कोई बात
नहीं, अगर आप थैले में दूसरा पत्थर देखेंगे
तो पता चल
जाएगा कि मैंने कौनसा पत्थर
उठाया था।" क्योंकि थैले में
अभी दूसरा पत्थर है, किसान की बेटी
जानती थी कि थैली से केवल काला
पत्थर निकलेगा और यही
माना जायेगा कि उसने सफ़ेद
पत्थर उठाया था और
साहूकार
भी अपनी बेईमानी को स्वीकार
नहीं कर पाता इस तरह होशियार
किसान
की बेटी ने असंभव को संभव
कर दिखाया।
moral-"बड़ी से बड़ी समस्या का भी हल
होता है, बस
हम उसे हल करने का कदम नहीं उठाते"ll

कविता - एक fouji का दर्द)

((एक fouji का दर्द))))}}}}●●●
मन तो मेरा भी करता है;;;
मॉ के पास में बैठूं और पॉव दबाऊँ मैं
लेकिन मैं इतना भी नही कर पाता,
क्योंकि मैं वो मानव हूँ जो मानव नही समझा जाता ****************************************
हमने बर्थ डे की पिघली हुई मोमबत्तियॉ देखी है,
हमने पापा की राह तकती सूनी अंखियाँ देखी हैं,
हमने पिचके हुए रंगीन गुब्बारे देखे हैं,
पर बच्चे के हाथ से मैं केक नही खा पाता,
क्योंकि मैं वो मानव हूँ जो मानव नही समझा जाता ****************************************
निज घर करके अंधेरा सबके दिये जलवाये हैं,
कहीं सजाया भोग कहीं गोवर्धन पुजवायें हैं,
और भाई बहिन को यमुना स्नान करवाये हैं,
पर तिलक बहिन का मेरे माथे तक नही आ पाता,
क्योंकि मैं वो मानव हूँ जो मानव नहीं समझा जाता
****************************************
हमने ईद दिवाली दशहरा खूब मनाये हैं,
रोज निकाले जुलूस और गुलाल रंग बरसाए हैं,
ईस्टर,किर्समस,वैलेंटाइन और फ्राइडे मनाये हैं,
पर मैं कोई होलीडे संडे नही मना पाता,
क्योंकि मैं वो मानव हूँ जो मानव नहीं समझा जाता
****************************************
आपदा फायरिंग या विस्फोट पर आना है,
सब भागें दूर- दूर पर हमें उधर ही जाना है,
रोज रात में जागकर आप सबको सुलाना है,
पर मैं दिन में कभी दो घंटे नहीं सो पाता,
क्योंकि मैं वो मानव हूँ जो मानव नहीं समझा जाता
****************************************
जिन्हें अपनों ने ठुकराया वो सैकड़ो अपनाये हैं,
जिन्हें देखकर अपने भागे हमने वो भी दफनाये हैं,
कई कटे-फटे, जले- गले, अस्पताल पहुंचाए हैं,
कई चेहरों को देखकर मैं खाना नहीं खा पाता,
क्योंकि मैं भी मानव हूँ पर मानव नहीं समझा जाता
****************************************
घनी रात सुनसान राहों पर जब कोई जाता है,
हर पेड़ पौधा भी वहॉ चोर नजर आता है,
कड़कड़ाती ठंड में जब रास्ता भी सिकुड़ जाता है,
लेकिन border पर बैठा jawan फिर भी नही घबराता,
क्योंकि यह वो मानव है जो मानव नही समझा जाता
************ ******************
नहीं चाहता मैं कोई सम्मान दिलवाया जाय,
नही चाहता हमें सिर आँखों पर बैठाया जाय,
चाहत है बस हफ्ते CL मिल जाय,
कभी हमारी तरफ भी कोई प्यारी नजर उठ जाय,
हम भी मानव हैं और हमें बस मानव समझा जाय
****************************************

आज फिर स्कूल जाने को दिल करता हे

आज फिर स्कूल जाने को दिल करता हे

Ajj fir School jaane ko Dil karta
hai.....
Subah-Subah jaldi uth nahane ko
Dil
karta hai,
School dress pehan kr tie lagane ko
Dil karta hai,
Ajj firr.....Line me lagkar prayer
karne
ko Dil karta hai,
Ek dusre ko dhakka de aage badhne
ko Dil karta hai,
Ajj firr Class ke khali period me
chalk
marne ko Dil karta hai,
Lunch time me ek dusre ka tiffin
khane ko Dil karta hai,
Aaj firr.....Class me mam ke
questions puchne par chupchap
khade honne ko Dil karta hai,
Home work na karne aur dher sarre
bahane banane ko Dil karta hai,
Ajj firr.....Social science ke period
me
sone ka Dil karta hai,
Kissi ko dekh muskurane ka Dil karta
hai,
Saara Din masti karne ka Dil karta
hai,
Chutti ke intezar me bell bajne ka
Dil
karta hai,
Ajj firr.....Un dosto ke saath baate
karne aur ladne jhagdne ka Dil karta
hai,
Sab kuchh bhul jaankar mast hone
ka
Dil karta hai,
Aaj fir School jaane ko Dil karta
hai...........
Share it if u missing ur school days...

कविता - प्यार भरी

कविता प्यार भरी


Koi ehsaas bhi Tumko yaad nahi,
Koi baat bhi Tumko yaad nahi,
Ek shaks ne Tumko chaha tha,
Wo zaat bhi Tumko yaad nahi,,
Jab shab ki bijli chamki thi,
Or badal toot k barsa tha,
Hum dono jis main bhigay the,
Wo barsaat bhi Tumko yaad nahi,,
Wo saahil dariya phool hawa,
Wo waday sath nibhanay k
Or shab bhar chand ko dekha tha,
Wo raat bhi Tumko yaad nahi,,
Me likhta tha kvita tum pe
Tum jwab bhi us ka likhti Thi
un kvita ka kya,ek Bhag bhi Tumko yad nhi,,
Tum kehti thi main sunta hoon,
Main kehta tha Tum sunti thi
Un lakhon baton main koi,
Ek baat bhi Tumko yaad nahi.. 

कहानी- चित्रकार


एक नगर में एक मशहूर चित्रकार रहता था । चित्रकार ने एक बहुत सुन्दर तस्वीर बनाई और उसे नगर के चौराहे मे लगा दिया और नीचे लिख दिया कि जिस किसी को , जहाँ भी इस में कमी नजर आये वह वहाँ निशान लगा दे । जब उसने शाम को तस्वीर देखी उसकी पूरी तस्वीर पर निशानों से ख़राब हो चुकी थी । यह देख वह बहुत दुखी हुआ । उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे वह दुःखी बैठा हुआ था । तभी उसका एक मित्र वहाँ से गुजरा उसने उस के दुःखी होने का कारण पूछा तो उसने उसे पूरी घटना बताई । उसने कहा एक काम करो कल दूसरी तस्वीर बनाना और उस मे लिखना कि जिस किसी को इस तस्वीर मे जहाँ कहीं भी कोई कमी नजर आये उसे सही कर दे । उसने अगले दिन यही किया । शाम को जब उसने अपनी तस्वीर देखी तो उसने देखा की तस्वीर पर किसी ने कुछ नहीं किया । वह संसार की रीति समझ गया ।"कमी निकालना , निंदा करना , बुराई करना आसान , लेकिन उन कमियों को दूर करना अत्यंत कठिन होता है "This is life........जब दुनिया यह कह्ती है कि ‘हार मान लो’तो आशा धीरे से कान में कह्ती हैकि.,,,,‘एक बार फिर प्रयास करो’और यह ठीक भी है..,,,"जिंदगी आईसक्रीम की तरह है, टेस्ट करो तो भी पिघलती है;.,,,वेस्ट करो तो भी पिघलती है,,,,,,इसलिए जिंदगी को टेस्ट करना सीखो, वेस्ट तो हो ही रही है.,,,"Life is very beautiful Enjoy it"